अर्जुन की भक्ति और शिव की लीला



महाभारत का एक प्रेरणादायक प्रसंग है जब पांडव अज्ञातवास में थे। उन दिनों अर्जुन ने यह संकल्प लिया था कि वह प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा के उपरांत ही अन्न ग्रहण करेंगे। साथ ही, सभी पांडवों ने यह नियम भी बना रखा था कि वे एक साथ बैठकर ही भोजन करेंगे।

एक दिन भोजन का समय हो गया, लेकिन अर्जुन को कहीं भी भगवान शिव का मंदिर या शिवलिंग नहीं दिखाई दिया। बिना शिवलिंग के पूजा करना संभव नहीं था, इसलिए वह व्याकुल हो उठे। उधर भीम को अत्यधिक भूख लगी थी। वह जानता था कि जब तक अर्जुन पूजा पूरी नहीं कर लेते, तब तक कोई भी भाई भोजन नहीं कर सकता।

तब सभी भाई शिवलिंग की खोज में निकल पड़े। तभी भीम की नजर एक ताड़ी के पेड़ के तने पर पड़ी, जिसकी आकृति शिवलिंग जैसी प्रतीत हो रही थी। उसने उसी तने को ज़मीन में गाड़ दिया और उस पर फूल-पत्ते चढ़ा दिए। फिर वह अर्जुन से बोला, “भ्राताश्री! शिवजी की प्रतिमा मिल गई है। शीघ्र पूजन करो, मुझे बहुत तेज भूख लगी है।”

अर्जुन ने श्रद्धा भाव से उस स्थान पर जाकर विधिपूर्वक शिव पूजन किया। पूजा के बाद सभी भाइयों ने मिलकर भोजन किया।

भोजन समाप्त होने पर भीम हँसने लगा। यह देखकर युधिष्ठिर ने पूछा, “क्या बात है अनुज? किस बात पर हँस रहे हो?”

भीम हँसते हुए बोला, “अर्जुन! क्या तुम्हें पता है कि तुमने जिसे शिवजी समझकर पूजा किया, वह असल में क्या था?”

अर्जुन ने पूरे विश्वास से उत्तर दिया, “वह तो शिवलिंग ही था।”

भीम जोर से ठहाका लगाकर बोला, “वो तो एक ताड़ी के पेड़ का तना था! मैंने उसे ही ज़मीन में गाड़ दिया और फूल-पत्ते चढ़ा दिए।”

लेकिन अर्जुन इस बात को मानने को तैयार नहीं हुए। तब युधिष्ठिर ने प्रस्ताव रखा, “चलो, जाकर स्वयं देख लेते हैं।”

भीम आत्मविश्वास से भरकर सबसे आगे चला और उस तने को उखाड़ने का प्रयास करने लगा। उसकी ताकत का तो कोई सानी नहीं था—वह हजार हाथियों का बल रखने वाला था। फिर भी उसने जब पूरी शक्ति लगाई, तो भी वह तना अपनी जगह से हिल तक नहीं सका।

यह देखकर भीम स्तब्ध रह गया। वह शिवजी का मज़ाक समझकर जो काम कर बैठा था, वह अब उसके लिए शर्म का कारण बन गया। उसने लज्जा से सिर झुका लिया।

तब युधिष्ठिर ने मुस्कुराते हुए कहा, “प्रिय अनुज! हो सकता है कि वह वास्तव में ताड़ी का तना रहा हो, लेकिन अर्जुन की श्रद्धा और भक्ति सच्ची थी। जब भक्त का भाव सच्चा हो, तो साधारण चीज़ें भी दिव्यता को प्राप्त कर लेती हैं। संभव है, तुम्हारा लगाया गया तना भी भगवान शिव के स्वरूप में परिवर्तित हो गया हो।”

यह कथा हमें यह सिखाती है कि ईश्वर की प्राप्ति के लिए साधन से अधिक महत्वपूर्ण साधक की श्रद्धा होती है।

Post a Comment

0 Comments