पाप के अंधेरे में भक्ति का प्रकाश: राबिया बसरी की प्रेरक कथा

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एक समय की बात है। एक महान साध्वी हुईं, जिनका नाम था राबिया बसरी। युवावस्था में वे असाधारण रूप से सुंदर थीं, पर उनसे भी अधिक सुंदर था उनका निर्मल हृदय और परमात्मा के प्रति अटूट विश्वास।

एक दुर्भाग्यपूर्ण दिन चोरों ने उन्हें अगवा कर लिया और एक वेश्या के कोठे पर बेच दिया। परिस्थितियाँ ऐसी थीं कि अब उन्हें वही जीवन जीने के लिए मजबूर किया गया, जो वहाँ की अन्य स्त्रियाँ जी रही थीं। पर शरीर को बाँध लेने से आत्मा को कोई बाँध नहीं सकता—यह बात राबिया भली-भाँति जानती थीं।

पहली ही रात उनके पास एक युवक को भेजा गया। राबिया ने उसे देखकर मुस्कराकर कहा,
“आप जैसे भले मनुष्य को देखकर मेरा हृदय प्रसन्न हो गया है। कृपया सामने रखी कुर्सी पर बैठ जाइए। उससे पहले मैं कुछ क्षण परमात्मा का स्मरण करना चाहती हूँ। यदि आप चाहें, तो आप भी मेरे साथ बैठ सकते हैं।”

यह सुनकर युवक स्तब्ध रह गया। वह भी चुपचाप भूमि पर बैठ गया। कुछ देर बाद राबिया उठीं और शांत स्वर में बोलीं,
“यदि मैं आपको यह स्मरण करा दूँ कि एक दिन हम सबको इस संसार से विदा लेना है, तो क्या आप बुरा मानेंगे?
और यह भी कि जिस पाप की इच्छा अभी आपके मन में है, वही आपको नरक की अग्नि की ओर ले जाएगा?”

फिर उन्होंने सहजता से पूछा,
“अब निर्णय आपके हाथ में है—क्या आप उस अग्नि में कूदना चाहेंगे या उससे स्वयं को बचाना चाहेंगे?”

युवक अवाक रह गया। उसकी आँखें खुल चुकी थीं। काँपते स्वर में वह बोला,
“हे पवित्र स्त्री! आपने आज मेरी आत्मा को जगा दिया। मैं वचन देता हूँ कि फिर कभी पाप के इस मार्ग पर कदम नहीं रखूँगा।”

इसके बाद रोज़ नए-नए लोग राबिया के पास भेजे जाने लगे। पर हर व्यक्ति उनके शब्दों से बदलकर लौटता। कोई भी दोबारा उस कोठे की ओर नहीं गया।

कोठे का मालिक हैरान था। इतनी सुंदर और युवा स्त्री होने के बावजूद कोई ग्राहक वापस क्यों नहीं आता? रहस्य जानने के लिए उसने एक रात अपनी पत्नी को ऐसी जगह छिपा दिया, जहाँ से वह सब कुछ देख सके।

उस रात जैसे ही एक व्यक्ति कमरे में आया, राबिया आदर से खड़ी होकर बोलीं,
“आइए भले मनुष्य, आपका स्वागत है। इस पाप के घर में रहते हुए भी मैं कभी नहीं भूलती कि परमात्मा हर जगह उपस्थित है। वह सब कुछ देखता है और पूर्ण न्याय करता है। आपका इस बारे में क्या विचार है?”

वह व्यक्ति सकपका गया और बोला,
“हाँ… पंडित और मौलवी भी यही कहते हैं।”

राबिया ने आगे कहा,
“यहाँ जो भी पाप करता है, उसे उसका फल अवश्य मिलता है—दुःख, कष्ट और अशांति के रूप में।
हम मनुष्य जन्म भजन और बंदगी के लिए पाते हैं, परमात्मा से मिलने के लिए, न कि पशुओं से भी बदतर बनकर उसे नष्ट करने के लिए।”

उन शब्दों में ऐसी सच्चाई थी कि वह व्यक्ति फूट-फूटकर रो पड़ा और उनके चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगा।

यह दृश्य देखकर कोठे के मालिक की पत्नी भी अपने को रोक न सकी। वह बाहर आई और पश्चाताप करते हुए बोली,
“हे पवित्र कन्या! तुम वास्तव में साध्वी हो। हमने तुम पर कितना बड़ा पाप थोपना चाहा। अभी इसी क्षण इस दलदल से बाहर निकल जाओ।”

इस घटना ने उस स्त्री और उसके पति—दोनों के जीवन की दिशा बदल दी। उन्होंने पाप की कमाई सदा के लिए छोड़ दी।

सच ही कहा गया है—ईश्वर के सच्चे भक्त जहाँ भी होते हैं, जैसी भी परिस्थितियों में हों, वे मनुष्य जन्म के वास्तविक उद्देश्य की ओर संकेत करते हैं और भटके हुए लोगों को सदाचार के मार्ग पर लौटा लाते हैं।

वह साधारण स्त्री कोई और नहीं, बल्कि महान संत राबिया बसरी थीं।

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