दीवाली की कहानी – अंधकार पर प्रकाश की विजय

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दीवाली या दीपावली भारत का सबसे प्रसिद्ध और पवित्र त्योहार है। इसे “प्रकाश का पर्व” कहा जाता है क्योंकि यह अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है। यह त्योहार न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी लोगों के जीवन में खुशियाँ और एकता का संदेश लाता है।

दीवाली का अर्थ है “दीपों की पंक्ति”। इस दिन घर-घर में दीये जलाए जाते हैं, ताकि जीवन से अंधकार और नकारात्मकता को दूर किया जा सके। दीवाली की मुख्य कहानी भगवान श्रीराम के जीवन से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि अयोध्या के राजा दशरथ के बड़े पुत्र राम को उनके पिता ने एक वचन के कारण चौदह वर्ष के लिए वनवास भेज दिया। राम अपनी पत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ वन में चले गए।

वनवास के दौरान राक्षस राजा रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया और उन्हें लंका ले गया। भगवान राम ने अपने भक्त हनुमान और वानर सेना की सहायता से रावण के विरुद्ध युद्ध किया। कई दिनों के संघर्ष के बाद, भगवान राम ने रावण का वध किया और सीता जी को वापस अयोध्या लेकर आए। जब श्रीराम चौदह वर्ष बाद अपनी जन्मभूमि अयोध्या लौटे, तो पूरे राज्य में आनंद की लहर दौड़ गई। अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में दीपों की कतारें जलाईं। उसी दिन से हर वर्ष दीपावली मनाई जाती है।

दीवाली के पाँचों दिन का अपना-अपना महत्व है। पहला दिन धनतेरस कहलाता है, जब लोग अपने घरों की सफाई करते हैं और सोना, चाँदी या बर्तन खरीदते हैं। यह दिन धन और समृद्धि का प्रतीक है। दूसरा दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दीवाली के नाम से जाना जाता है, जो भगवान कृष्ण की राक्षस नरकासुर पर विजय की स्मृति में मनाई जाती है।

तीसरा दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है — मुख्य दीवाली। इस दिन लोग अपने घरों को दीपकों, मोमबत्तियों और रंग-बिरंगी लाइटों से सजाते हैं। दरवाजों पर सुंदर रंगोली बनाई जाती है और घरों में लक्ष्मी पूजन किया जाता है। लोग मानते हैं कि इस दिन माता लक्ष्मी अपने भक्तों के घर आती हैं और उन्हें धन, सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। पूजा के बाद परिवारजन मिठाइयाँ बाँटते हैं, पटाखे जलाते हैं और एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देते हैं।

दीवाली का चौथा दिन गोवर्धन पूजा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है, जिन्होंने गोवर्धन पर्वत को उठाकर अपने भक्तों की रक्षा की थी। पाँचवाँ और अंतिम दिन भाई दूज कहलाता है, जो भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं, और भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं।

दीवाली केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह परिवारों और समाज को जोड़ने वाला उत्सव है। लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं, बाजारों में खरीदारी करते हैं और एक-दूसरे से मिलकर प्रेम और सद्भावना का आदान-प्रदान करते हैं। इस त्योहार का माहौल आनंद, प्रकाश और खुशियों से भर जाता है।

दीवाली का एक और महत्व यह है कि यह हमें आध्यात्मिक संदेश देती है। दीपक जलाना केवल बाहरी अंधकार को मिटाना नहीं, बल्कि यह हमारे भीतर के अंधकार को भी दूर करने का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि हमें अपने जीवन से अहंकार, क्रोध, लोभ और द्वेष को मिटाकर सत्य, प्रेम और सदाचार के मार्ग पर चलना चाहिए।

आज के समय में दीवाली का स्वरूप कुछ बदल गया है। पहले लोग मिट्टी के दीये जलाकर पर्यावरण को शुद्ध रखते थे, लेकिन अब पटाखों और रासायनिक लाइटों से प्रदूषण बढ़ने लगा है। इसलिए अब लोग पर्यावरण अनुकूल दीवाली मनाने लगे हैं। वे पटाखों की जगह मिट्टी के दीये, मोमबत्तियाँ और फूलों से सजावट करते हैं, जिससे न तो हवा दूषित होती है और न ही शोर प्रदूषण होता है। कई लोग गरीबों को कपड़े और मिठाइयाँ बाँटकर इस पर्व को और भी पवित्र बना देते हैं।

दीवाली का आर्थिक महत्व भी बहुत बड़ा है। इस अवसर पर बाजारों में खूब रौनक होती है। लोग नए कपड़े, मिठाइयाँ, सजावट का सामान, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ और उपहार खरीदते हैं। इस समय व्यापारियों को अच्छा लाभ होता है और देश की अर्थव्यवस्था में भी तेजी आती है।

भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में आज दीवाली बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। नेपाल, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, फिजी, अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में भी भारतीय समुदाय इस पर्व को मनाते हैं। कई विदेशी भी अब इस त्योहार को अपनाकर इसके संदेश — “अंधकार पर प्रकाश की विजय” — को अपने जीवन में उतार रहे हैं।

दीवाली हमें यह सिखाती है कि चाहे जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न हों, अंत में अच्छाई की ही जीत होती है। जिस तरह भगवान राम ने कठिन वनवास के बाद विजय प्राप्त की, उसी प्रकार हमें भी जीवन में धैर्य और सत्य के मार्ग पर चलते रहना चाहिए।

अंततः, दीवाली केवल दीपों का त्योहार नहीं है, बल्कि यह आशा, प्रेम, और नवआरंभ का पर्व है। यह हमें याद दिलाता है कि सच्चा प्रकाश हमारे भीतर है — वह प्रकाश जो हमें सही राह दिखाता है, जो हमें दूसरों के प्रति दया, करुणा और सम्मान का भाव सिखाता है। जब हर घर में दीपक जलता है, तो मानो पूरी सृष्टि आलोकित हो उठती है।

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