सनातन धर्म के ग्रंथों और पुराणों में सृष्टि की रचना, जीवों की उत्पत्ति और उनके विकास से जुड़े गहन रहस्यों का उल्लेख मिलता है। इन्हीं रहस्यों में एक प्रमुख विचार है – 84 लाख योनियाँ। शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक आत्मा अपने कर्मों के आधार पर इन योनियों में विचरण करती है और फिर मानव जन्म प्राप्त करती है। विभिन्न पुराणों में योनियों की गणना भले ही अलग-अलग बताई गई हो, लेकिन मूल सिद्धांत एक ही है – जीव को कर्मफलानुसार जन्म-जन्मांतर के चक्र में घूमना पड़ता है।
योनियों का वर्गीकरण
अनेक आचार्यों ने 84 लाख योनियों को दो प्रमुख वर्गों में विभाजित किया है :
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योनिज प्राणी – वे जीव जो दो प्राणियों के संयोग से उत्पन्न होते हैं। जैसे मनुष्य, पशु-पक्षी, कीट-पतंग आदि। इनका जन्म माता-पिता के मिलन से होता है।
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आयोनिज प्राणी – वे जीव जो स्वतः ही उत्पन्न हो जाते हैं, जिनका जन्म किसी माता-पिता के संयोग से नहीं होता। जैसे जलकणों में पनपने वाले सूक्ष्म जीव, अमीबा आदि।
शास्त्रीय दृष्टिकोण
पुराणों में कहा गया है कि ईश्वर ने सृष्टि की रचना करते समय अनंत प्रकार के जीव उत्पन्न किए। इनमें स्थावर (अचल – जैसे वृक्ष, पौधे) और जंगम (चलने-फिरने वाले) दोनों प्रकार के प्राणी सम्मिलित हैं। भागवत पुराण और पद्म पुराण में यह स्पष्ट किया गया है कि जीवात्मा अपने कर्मानुसार योनियों में विचरण करती है।
84 लाख योनियों का तात्त्विक अर्थ
‘84 लाख’ की संख्या को केवल गणितीय दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। यह जीवन के असीम रूपों का प्रतीक है। विभिन्न आचार्यों ने इसे इस प्रकार विभाजित किया है :
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देव योनि
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मनुष्य योनि
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पशु योनि
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पक्षी योनि
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कीट योनि
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वृक्ष व वनस्पति योनि
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सूक्ष्म जीव योनि
यह विविधता बताती है कि सृष्टि में जीवन के कितने असंख्य रूप विद्यमान हैं।
मानव जन्म का महत्व
शास्त्रों में कहा गया है कि जीव 84 लाख योनियों का अनुभव करने के बाद मानव जन्म प्राप्त करता है। यही कारण है कि मानव जीवन को अत्यंत दुर्लभ बताया गया है। मनुष्य में विवेक, साधना और मोक्ष प्राप्ति की क्षमता है। अन्य योनियाँ केवल भोग के लिए हैं, जबकि मानव जीवन कर्म और मुक्ति के लिए है।
योनिज और आयोनिज का दार्शनिक पक्ष
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योनिज प्राणी – यह श्रेणी हमें बताती है कि संसार में अधिकांश जीवन उत्पत्ति के लिए ‘संयोग’ पर आधारित है। दो जीवों के संयोग से नई सृष्टि का निर्माण होता है।
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आयोनिज प्राणी – यह वर्ग गहरे वैज्ञानिक रहस्यों की ओर संकेत करता है। आधुनिक विज्ञान भी सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति और उनके स्वतः विकसित होने की प्रक्रिया को मानता है। अमीबा और एककोशीय जीव इसका उदाहरण हैं।
आध्यात्मिक शिक्षा
84 लाख योनियों का उल्लेख केवल जीव-जंतुओं की संख्या बताने के लिए नहीं है। यह एक दार्शनिक संदेश भी है। आत्मा इन असंख्य योनियों में भटकते-भटकते थक जाती है और अंततः मानव रूप पाकर ईश्वर की ओर अग्रसर होती है। यही कारण है कि संत-महात्मा बार-बार मनुष्य को उसके अमूल्य जीवन का स्मरण कराते हैं और उसे भक्ति, साधना और धर्मपालन की ओर प्रेरित करते हैं।
विज्ञान और शास्त्र का संगम
यदि हम ध्यान दें तो शास्त्रों का यह वर्णन विज्ञान से विरोधाभासी नहीं है। विज्ञान आज यह बताता है कि जीवन के विभिन्न रूप लाखों-करोड़ों वर्षों के विकासक्रम से उत्पन्न हुए हैं। पुराणों का ‘84 लाख’ भी जीवन की उसी विविधता का प्रतीक है।
निष्कर्ष
84 लाख योनियाँ केवल पौराणिक कल्पना नहीं, बल्कि एक गहरा संदेश है। यह हमें बताता है कि जीवन अनमोल है, असंख्य रूपों में भटकने के बाद हमें मानव जन्म मिला है। इस जन्म का उद्देश्य केवल भोग नहीं, बल्कि आत्मोन्नति और मोक्ष है। योनिज और आयोनिज की अवधारणा हमें यह समझाती है कि जीवन की उत्पत्ति के अनेक मार्ग हैं, किंतु अंतिम लक्ष्य आत्मा की मुक्ति ही है।
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