श्री गणेश आरती : शब्द, भाव और महत्व

 

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पारंपरिक आरती

आरती शब्द:
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

एकदंत दयावंत, चार भुजाधारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा।
गजमुख को हरषित, चितवन करि लेवा॥

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

आरती का भावार्थ

इस आरती में भगवान गणेश को "विघ्नहर्ता" और "मंगलकर्ता" के रूप में पूजा जाता है। उनका रूप – एकदंत (एक दाँत), चार भुजाएँ, माथे पर सिंदूर और वाहन मूषक – उनकी दिव्य विशेषताओं को दर्शाता है। गणेश जी को लड्डू अत्यंत प्रिय हैं, इसीलिए उन्हें भोग स्वरूप लड्डू अर्पित किए जाते हैं।

आरती का महत्व

आरती का अर्थ है – दीपक द्वारा भगवान का स्वागत और स्तुति। श्री गणेश की आरती करने से जीवन के विघ्न दूर होते हैं और मंगल कार्य सिद्ध होते हैं।

  • धार्मिक महत्व – गणेश जी को प्रथम पूज्य देवता माना गया है। किसी भी पूजा, यज्ञ या शुभ कार्य की शुरुआत उनके नाम से होती है।

  • आध्यात्मिक महत्व – आरती से मन की चंचलता शांत होती है और श्रद्धा जागृत होती है।

  • सामाजिक महत्व – सामूहिक आरती में भक्तगण एक साथ “जय गणेश” गाकर भक्ति और एकता का अनुभव करते हैं।

आरती की विधि

गणेश चतुर्थी या प्रतिदिन प्रातः और संध्या के समय गणपति की मूर्ति या चित्र के सामने आरती की जाती है।

  1. दीपक में घी या तेल जलाकर भगवान के सामने रखें।

  2. गणपति को दूर्वा, लाल फूल, लड्डू और मोदक अर्पित करें।

  3. आरती गाएँ और दीपक को भगवान के चारों ओर घुमाएँ।

  4. अंत में आरती की लौ से भक्तगण आशीर्वाद ग्रहण करें।

भक्ति अनुभव

जब आरती गाई जाती है तो वातावरण भक्तिमय हो उठता है। ढोल, ताशे, झांझ और घंटियों की ध्वनि से भक्तगण का मनोबल बढ़ता है और घर में सुख-समृद्धि का संचार होता है।


श्री गणेश आरती केवल पूजा की औपचारिकता नहीं, बल्कि यह आत्मा को ईश्वर से जोड़ने का माध्यम है। प्रतिदिन श्रद्धा और विश्वास के साथ आरती करने से व्यक्ति के जीवन के सभी विघ्न दूर होते हैं और ज्ञान, बुद्धि तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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