पंजाब और हिमाचल प्रदेश में बाढ़ के मुख्य कारण

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पंजाब और हिमाचल प्रदेश में हाल के वर्षों में बाढ़ की घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं। ये बाढ़ न केवल जनजीवन को प्रभावित करती हैं, बल्कि कृषि, बुनियादी ढांचे और राज्य की अर्थव्यवस्था पर भी भारी असर डालती हैं। इन बाढ़ों के पीछे कई प्राकृतिक और मानव-जनित कारण हैं। आइए इन कारणों को विस्तार से समझें।

1. अत्यधिक वर्षा और मानसून का असंतुलन

हिमाचल प्रदेश और पंजाब दोनों क्षेत्र मानसून पर अत्यधिक निर्भर रहते हैं। हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा के पैटर्न में गंभीर बदलाव देखने को मिले हैं। कभी-कभी बहुत कम समय में अत्यधिक वर्षा हो जाती है, जिससे नदियाँ और नाले उफान पर आ जाते हैं। विशेषकर पहाड़ी इलाकों में अचानक भारी बारिश (Cloudburst) के कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसका प्रभाव नीचे के मैदानी क्षेत्रों, जैसे पंजाब, पर पड़ता है।

2. हिमालयी ग्लेशियरों का पिघलना

हिमाचल प्रदेश में मौजूद हिमालयी ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। गर्मियों के मौसम में ग्लेशियरों से निकलने वाला पानी नदियों में जलस्तर को बढ़ा देता है। जब यह पानी अत्यधिक मात्रा में एक साथ आता है, तो नदियाँ अपने किनारों को पार कर जाती हैं और बाढ़ का कारण बनती हैं। सतलुज, ब्यास और रावी जैसी नदियाँ इस प्रक्रिया से सबसे अधिक प्रभावित होती हैं।

3. नदियों और जलमार्गों का अतिक्रमण

पंजाब और हिमाचल में जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण के कारण नदियों के किनारों पर अवैध निर्माण कार्य हुए हैं। नदियों की प्राकृतिक बहाव क्षमता को बाधित किया गया है, जिससे बारिश के समय पानी को फैलने का रास्ता नहीं मिलता और वह आसपास के इलाकों में फैल जाता है। इस कारण जलभराव और बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है।

4. वनों की कटाई और पहाड़ी इलाकों में निर्माण कार्य

हिमाचल प्रदेश में पर्यटन और विकास कार्यों के नाम पर बड़े पैमाने पर वनों की कटाई हुई है। इससे मिट्टी की पकड़ कमजोर हो जाती है और बारिश के समय भूस्खलन और मिट्टी का बहाव तेज हो जाता है। इससे नदियों में गाद जमा हो जाती है, जिससे उनकी जलधारण क्षमता घट जाती है और पानी बाहर निकलकर बाढ़ का रूप ले लेता है।

5. बांधों और जलाशयों का खराब प्रबंधन

भाखड़ा नांगल जैसे बड़े बांधों से पानी के निर्गमन का सही समय और मात्रा निर्धारित न करना भी बाढ़ का एक कारण है। जब अचानक बहुत अधिक मात्रा में पानी छोड़ा जाता है, तो नीचे के क्षेत्रों में जलस्तर अचानक बढ़ जाता है और बाढ़ आ जाती है।

पंजाब और हिमाचल प्रदेश में बाढ़ केवल प्राकृतिक आपदा नहीं है, बल्कि यह मानवजनित गतिविधियों का भी परिणाम है। यदि वर्षा प्रबंधन, नदी संरक्षण, वन संरक्षण और शहरी नियोजन को बेहतर बनाया जाए, तो बाढ़ के प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है। जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए दीर्घकालिक नीतियों की आवश्यकता है ताकि भविष्य में ऐसे संकटों से निपटा जा सके

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