नागपुर — जिसे आम जनमानस “संतरा नगरी” के नाम से जानता है, वहीं कुछ लोग इसे हल्दीराम के नमकीन से जोड़कर पहचानते हैं। लेकिन रेलवे जगत में नागपुर को जो वैश्विक पहचान मिली है, वह किसी संतरे या नमकीन से नहीं, बल्कि “डबल डायमंड क्रॉसिंग” से है — एक ऐसी इंजीनियरिंग चमत्कारिक संरचना, जिसे देखने विदेशी अभियंता भी दूर-दूर से आते हैं।
रेलवे में अगर आपने नागपुर की इस अद्भुत क्रॉसिंग को नहीं देखा, तो आपकी रेल-सेवा अधूरी मानी जाती है। यह स्थान न केवल भारत के लिए बल्कि रेलवे इंजीनियरिंग की दृष्टि से पूरे विश्व के लिए गर्व का केंद्र है। नागपुर का यह “रेलवे धाम” वास्तव में भारत के भौगोलिक सेंटर प्वाइंट पर स्थित है, जो उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम — चारों दिशाओं को एक सूत्र में बांधता है।
🔹 क्या है डायमंड क्रॉसिंग?
रेलवे में जब एक रेल लाइन दूसरी रेल लाइन को काटते हुए पार करती है, तो उस बिंदु को डायमंड क्रॉसिंग कहा जाता है। चाहे दोनों लाइनें समान गेज की हों या अलग प्रकार की, अगर वे 90 डिग्री पर एक-दूसरे को काटती हैं, तो इसे गणितीय रूप से स्क्वायर डायमंड क्रॉसिंग कहा जाता है।
नागपुर की यह विशेष डबल डायमंड क्रॉसिंग 1924 में बनाई गई थी — यानी आज से लगभग एक सदी पहले! वर्ष 1989 में इसका विद्युतीकरण हुआ, और तब से यह आधुनिक रेल संचालन का एक उत्कृष्ट उदाहरण बन गई।
🔹 इसकी खासियत
नागपुर स्टेशन के उत्तर में दिल्ली से आने वाली और दक्षिण में चेन्नई की ओर जाने वाली डबल लाइन स्टेशन में प्रवेश से लगभग एक किलोमीटर पहले दो हिस्सों में बंट जाती है।
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एक भाग नागपुर स्टेशन की ओर जाता है।
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दूसरा भाग नागपुर गुड्स यार्ड की ओर, जहां से केवल मालगाड़ियाँ चलती हैं।
यही मालगाड़ियों वाली डबल लाइन, मुंबई से हावड़ा जाने वाली ट्रंक रूट लाइन को क्रॉस करती है। इसी संगम से बनते हैं एक साथ चार डायमंड क्रॉसिंग्स, जो इसे “डबल डायमंड क्रॉसिंग” का दर्जा देते हैं।
हावड़ा की ओर जाने वाली मुख्य लाइन, पूरब की दिशा में आगे बढ़ती है, जबकि मालगाड़ी की दोनों लाइनें नागपुर गुड्स यार्ड से होकर अजनी “A केबिन” पर जाकर मुख्य लाइन से जुड़ जाती हैं — जो अब ऑटोमैटिक सेक्शन बन चुका है।
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