शहर के एक मोहल्ले में लगभग बीस कुत्तों का एक झुंड आतंक मचाए हुए था। जो भी वहाँ से गुजरता, वे उसे दौड़ा लेते, ज़ोर-ज़ोर से भौंकते, बाइक सवारों और साइकिल चालकों को गिरा देते, और पैदल चलने वालों को काट लेते। अगर कोई पलट कर पत्थर फेंक देता, तो पूरा झुंड उस पर टूट पड़ता। चूँकि पलटने की हिम्मत बहुत कम लोगों में थी, इसलिए धीरे-धीरे वह झुंड वहाँ का मालिक बन बैठा।
लोगों ने उस रास्ते से गुजरना बंद कर दिया, और शहर में वह जगह “कुत्तों का मोहल्ला” कहलाने लगी।
एक दिन उसी मोहल्ले की छतों के ऊपर से बंदरों का एक बड़ा झुंड निकला। वे अपनी मस्ती में उछलते-कूदते जा रहे थे। कुत्तों को यह अच्छा नहीं लगा — कोई उनके इलाके से बिना डर के, बिना झुके, ऐसे कैसे निकल सकता है?
कुत्तों ने नीचे से भौंकना, गुर्राना और दौड़ाना शुरू किया। तभी एक नन्हे बंदर ने पलटकर घुड़की दी। बस यही बात कुत्तों के अहंकार को चुभ गई। पूरा झुंड झल्लाकर उस पर टूट पड़ा। घबराहट में बंदर का बच्चा छत से फिसलकर नीचे गिरा, और कुत्तों ने उसे नोच डाला।
खून से लथपथ वह नन्हा प्राण अंत तक लड़ता रहा... और फिर मौन हो गया।
यह दृश्य देख बंदरों का पूरा झुंड क्रोध से भर उठा।
उन्होंने वह कर दिखाया, जो इंसान कभी न कर पाए थे।
हर एक कुत्ते को पकड़-पकड़कर नोचा, काटा, फाड़ा।
कईयों को छत से पटक दिया, जो बचे, उन्हें फिर ऊपर खींचकर पटका।
यहाँ तक कि पिल्लों को भी नहीं छोड़ा — क्योंकि वे भी आगे चलकर वही उपद्रवी बनते।
और इस तरह, उस मोहल्ले से कुत्तों का आतंक — उनकी पूरी नस्ल के साथ — समाप्त हो गया।
बंदरों का झुंड फिर चुपचाप आगे बढ़ गया।
अब वह इलाका, जो कभी “कुत्तों का मोहल्ला” कहलाता था,
शहर का सबसे शांत और सुरक्षित इलाका बन गया।
जहाँ मानव की सभ्यता, शिष्टाचार और विनम्रता काम न आएं,
वहाँ वानर की उद्दंडता ही निर्णायक सिद्ध होती है।
कभी-कभी नर से वानर बनना ही आवश्यक होता है — तभी लंका जलती है।🔥
जय श्री राम 🙏🏻🏹🚩
जय बजरंगबली 🙏🏻💪🏻🚩
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