सलाम की अनोखी सजा – एक किस्सा सेना से | The 1000 Salutes: A Funny Lesson in Army Discipline

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सेना का नाम आते ही हमारे दिमाग में सख्त अनुशासन, आदेश और सख्ती की छवि बनती है। पर सच कहूँ तो इस अनुशासन में भी कभी-कभी ऐसे मजेदार किस्से छिपे होते हैं जिन्हें सुनकर हंसी रोकना मुश्किल हो जाता है। आज मैं आपको ऐसा ही एक वाकया सुनाने जा रहा हूँ, जो कैंटोमेंट में घटा और जिसने सबको एक अलग ही सीख दी।

नया लेफ्टिनेंट और गुरखा सिपाही

एक दिन कैंटोमेंट में एक नया लेफ्टिनेंट राउंड पर था। पहली पोस्टिंग थी और उत्साह इतना ज्यादा कि हर छोटी बात पर नियम-कायदे का चश्मा लगा रहता था। तभी उसने देखा कि सामने से आता एक गुरखा सिपाही उसे सैल्यूट नहीं कर रहा।

“तुमने मुझे सलाम क्यों नहीं किया?” लेफ्टिनेंट गरजा।

बेचारा सिपाही थोड़ा घबराया और बोला – “साब, मैंने आपको देखा ही नहीं… गलती हो गई।”

लेकिन लेफ्टिनेंट को यह जवाब बिल्कुल पसंद नहीं आया। उसने तुरंत आदेश सुनाया –
“अब तुम्हें इसकी सजा मिलेगी। तुम मुझे लगातार 1000 सैल्यूट ठोक कर दिखाओ।”

आदेश सुनते ही सिपाही ने सिर झुकाया और सलाम करना शुरू कर दिया। अभी मुश्किल से दस बार ही हाथ उठाया होगा कि उधर से सैम साहब आ गए।

सैम का हस्तक्षेप

सैम साहब बड़े वरिष्ठ अफसर थे। उन्होंने दूर से देखा कि एक सिपाही बार-बार हवा में सलाम ठोक रहा है, सामने कोई भी नहीं। यह नज़ारा वाकई अजीब था।

वे सीधे सिपाही के पास पहुंचे और पूछा –
“भाई, यह क्या हो रहा है?”

सिपाही ने पूरी सच्चाई बता दी। सैम मुस्कुराए और बोले – “ठीक है, लेफ्टिनेंट को बुलाओ।”

लेफ्टिनेंट की उलझन

लेफ्टिनेंट आया तो सैम ने बड़े गंभीर लेकिन मजाकिया अंदाज़ में कहा –
“बहुत बढ़िया किया। जूनियर्स को सख्ती से सिखाना चाहिए। वेल डन, आई एम प्राउड ऑफ यू।”

लेफ्टिनेंट का चेहरा गर्व से चमक उठा। लेकिन तुरंत ही सैम ने दूसरा तीर चलाया –

“लेकिन बेटा, सेना का नियम है कि जब भी कोई सैनिक अधिकारी को सैल्यूट करता है, तो अधिकारी को भी उसका जवाब सैल्यूट से देना अनिवार्य है। अब तुमने इसे 1000 सैल्यूट की सजा दी है, तो जाहिर है… तुम्हें भी 1000 सैल्यूट करने होंगे।”

अब लेफ्टिनेंट का चेहरा उतर गया। बात उसके गले से नीचे ही नहीं उतरी। मगर नियम तो नियम थे।

मैदान का नज़ारा

और फिर शुरू हुआ अनोखा दृश्य। अगले पूरे दो घंटे तक गुरखा सिपाही और लेफ्टिनेंट आमने-सामने खड़े होकर एक-दूसरे को सलाम ठोकते रहे।

कल्पना कीजिए – एक तरफ जोश से सलाम करता सिपाही और दूसरी तरफ जवाब में सलाम लौटाता लेफ्टिनेंट। दूर खड़े बाकी सैनिक यह नज़ारा देखकर हंसी दबा रहे थे। किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि अनुशासन का ऐसा मजेदार रूप भी देखने को मिलेगा।

छिपा हुआ सबक

इस छोटी-सी घटना ने सबको एक बड़ी सीख दी। अनुशासन केवल दूसरों पर थोपने की चीज़ नहीं, बल्कि उसे खुद निभाना भी ज़रूरी है। नेतृत्व का मतलब केवल आदेश देना नहीं, बल्कि उदाहरण बनकर दिखाना है।

कहानी मजेदार थी, लेकिन संदेश गहरा – नेता वही है जो नियमों का पालन खुद करे और दूसरों से भी करवाए।

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