कैलाश पर्वत और चंद्रमा का रहस्य सदियों से मानव जिज्ञासा और आस्था का केंद्र रहा है। हिमालय की ऊँचाइयों में स्थित कैलाश पर्वत को न केवल भारत बल्कि तिब्बत, नेपाल और चीन सहित कई देशों की धार्मिक परंपराओं में पवित्र माना जाता है। हिंदू धर्म में इसे भगवान शिव का निवास स्थान कहा गया है, जहाँ वे अपनी अर्धांगिनी मां पार्वती के साथ ध्यानमग्न रहते हैं। बौद्ध, जैन और बोन धर्म में भी यह पर्वत अत्यंत पवित्र है। इसकी ऊँचाई लगभग 21,778 फीट है और इसकी चोटी पर चढ़ना धार्मिक दृष्टि से वर्जित माना जाता है। माना जाता है कि यह पर्वत स्वयं ब्रह्मांड का केंद्र है और इसके चारों दिशाओं से चार पवित्र नदियाँ — गंगा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र और सतलुज — प्रवाहित होती हैं।
कैलाश पर्वत का चंद्रमा से जुड़ा रहस्य विशेष रूप से अद्भुत है। प्राचीन कथाओं और श्रद्धालु यात्रियों के अनुभवों के अनुसार, पूर्णिमा की रातों में कैलाश पर्वत अद्भुत रूप से चमक उठता है। ऐसा प्रतीत होता है मानो चंद्रमा की किरणें सीधे पर्वत की चोटी से संवाद कर रही हों। इस समय पर्वत के चारों ओर हल्की रजत आभा फैल जाती है, जो आसपास के वातावरण को दिव्य और अलौकिक बना देती है। वैज्ञानिक दृष्टि से यह घटना बर्फ और पत्थरों पर पड़ने वाली चंद्र किरणों की परावर्तन क्रिया से जुड़ी हो सकती है, लेकिन आध्यात्मिक मान्यताओं में इसे भगवान शिव की दिव्य उपस्थिति और उनकी ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।
कहा जाता है कि पूर्णिमा की रात कैलाश पर्वत के आसपास का वातावरण अत्यंत शांत, गूढ़ और ऊर्जावान हो जाता है। साधु-संत और तीर्थयात्री मानते हैं कि इस समय ध्यान और साधना करने से मानसिक शांति, आध्यात्मिक जागरण और दिव्य अनुभूति प्राप्त होती है। कुछ कथाओं में वर्णन है कि इस समय चंद्रमा और कैलाश पर्वत के बीच अदृश्य ऊर्जा का प्रवाह होता है, जो समूचे ब्रह्मांड में सकारात्मक कंपन फैलाता है।
तिब्बती परंपराओं में भी कैलाश पर्वत और चंद्रमा के संबंध को लेकर कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। उनके अनुसार, कैलाश ब्रह्मांडीय मंडल का केंद्र है और चंद्रमा इसकी ऊर्जा का प्रमुख वाहक है। जब चंद्रमा अपनी पूर्णता पर होता है, तो वह इस दिव्य ऊर्जा को पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों में पहुँचाता है। इसीलिए पूर्णिमा की रात को कैलाश की परिक्रमा करने का विशेष महत्व बताया गया है।
भारतीय पुराणों में भी चंद्रमा और कैलाश पर्वत के संबंध का उल्लेख मिलता है। शिव पुराण में वर्णित है कि भगवान शिव के जटाओं में गंगा और चंद्रमा दोनों ही स्थित हैं, जिससे यह संबंध और भी गहरा हो जाता है। चंद्रमा को ‘सोम’ कहा जाता है, और भगवान शिव का एक नाम ‘सोमेश्वर’ भी है, जो इस अद्भुत संबंध की पुष्टि करता है। इस दृष्टि से चंद्रमा की रोशनी में कैलाश पर्वत का आलोकित होना केवल प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि एक दिव्य संकेत माना जाता है।
कुछ साधक तो यह भी कहते हैं कि चंद्रमा की रोशनी कैलाश की बर्फीली सतह से टकराकर अदृश्य रूप से मंत्रोच्चार जैसी ध्वनियाँ उत्पन्न करती है, जो केवल गहन ध्यान में ही सुनी जा सकती हैं। यह ध्वनियाँ साधना में लय और गहराई प्रदान करती हैं।
आधुनिक युग में भी वैज्ञानिक और शोधकर्ता इस घटना के पीछे के कारणों को समझने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन आज तक कैलाश पर्वत और चंद्रमा के इस रहस्य का पूर्ण समाधान नहीं हो पाया है। यह पर्वत अपनी भव्यता, रहस्यमयता और आध्यात्मिक महिमा के कारण हमेशा से मानव मन में श्रद्धा और कौतूहल का मिश्रण जगाता रहा है।
कैलाश पर्वत और चंद्रमा का यह दिव्य मिलन हमें यह स्मरण कराता है कि प्रकृति और ब्रह्मांड के रहस्यों को पूरी तरह मापा या तौला नहीं जा सकता। कुछ रहस्य ऐसे होते हैं जो अनुभव और आस्था के स्तर पर ही समझे जा सकते हैं। पूर्णिमा की रात कैलाश पर्वत के दर्शन करना न केवल एक दृश्य आनंद है, बल्कि यह आत्मा को गहराई से छू लेने वाला आध्यात्मिक अनुभव भी है, जो मनुष्य को अपने भीतर छिपी अनंत संभावनाओं और दिव्यता का एहसास कराता है।
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