अगर आपको ताजमहल दुनिया का अजूबा लगता है, तो ठहरिए—कानपुर के एक शांत, साधारण-से दिखने वाले गाँव में स्थित एक मंदिर आपको इससे भी अधिक चकित कर सकता है। यह कहानी है बेहटा गाँव की, जो भीतरगाँव विकास खंड से लगभग तीन किलोमीटर दूर एक हरियाली से घिरे शांत इलाके में बसा है। पर यह गाँव अपने शांत स्वभाव के लिए नहीं, बल्कि अपने मंदिर की अनोखी भविष्यवाणी करने वाली छत के लिए जाना जाता है—एक ऐसी छत, जो बरसात आने से छह-सात दिन पहले ही चुपचाप टपकने लगती है और जैसे ही बारिश की पहली बूंदें धरती को छूती हैं, उसी पल वह रहस्यमयी टपकना बंद हो जाता है।
इस गाँव का हर बच्चा, हर बुजुर्ग इस रहस्य का साक्षी रहा है।
धूप में टपकने वाली छत की पहली बूंद
इतना कहना काफी होता है। बात कुछ ही देर में पूरे गाँव में फैल जाती है। ग्रामीणों के चेहरों पर हल्की-सी मुस्कुराहट दिखने लगती है—ये वही संकेत है जिसका इंतजार हर किसान, हर गृहस्थ कई दिनों से करता है।
क्योंकि यह साधारण बूंद नहीं होती। यह आने वाली बारिश की पहली आहट होती है।
छत और बारिश का यह रिश्ता कैसा?
कल्पना कीजिए—चिलचिलाती दोपहर में, जब आसमान साफ हो और कोई बादल दिसे भी ना, तब मंदिर की छत अचानक धीमे-धीमे टपकने लगे। और आश्चर्य की बात तो यह है कि जैसे ही बादल घिरने लगते हैं और बारिश की पहली बूंद गिरती है, छत एकदम सूख जाती है, जैसे वहाँ कभी नमी थी ही नहीं।
आज भी गाँव की खेती, बोआई, हल चलाना—सब कुछ इसी प्राकृतिक संकेत के अनुसार तय होता है।
कई वैज्ञानिक आए, पर रहस्य जस का तस
इस रहस्य ने वर्षों से शोधकर्ताओं, पुरातत्व वैज्ञानिकों और इतिहासकारों को आकर्षित किया है। कई बार विशेषज्ञों की टीमें वहाँ पहुँचीं। उन्होंने छत को हथौड़े से थपथपाकर सुना, चूने और पत्थर का विश्लेषण किया, छत की मोटाई मापी, लेकिन किसी भी वैज्ञानिक को इस रहस्यमयी रिसाव का कारण आज तक समझ नहीं आया।
इतिहास के पन्नों में छिपी एक अनोखी धरोहर
मंदिर के गर्भगृह की दिव्यता
मंदिर के भीतर प्रवेश करते ही एक शांति, एक ठहराव महसूस होता है। गर्भगृह में विराजते हैं—
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भगवान जगन्नाथ,
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उनके बड़े भाई बलदाऊ,
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और बहन सुभद्रा।
ये तीनों ही काले, चिकने पत्थरों से बनी अत्यंत प्राचीन मूर्तियाँ हैं—समय की धूप-छाँव ने इन्हें छुआ है, पर क्षतिग्रस्त नहीं किया।
मंदिर के प्रांगण में
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सूर्यदेव,
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और पद्मनाभमकी मूर्तियाँ भी स्थित हैं, जिनका ऐतिहासिक महत्व अपनी जगह अनमोल है।
पुरी जैसा उत्सव, लेकिन गाँव की आत्मा से जुड़ा
हर वर्ष यहाँ जगन्नाथ पुरी की तरह भव्य यात्रा निकाली जाती है। ढोल-नगाड़े, फूल-मालाएँ, भजन और लोगों की आस्था—सब मिलकर इस छोटे-से गाँव को एक पावन उत्सव में बदल देते हैं।
एक मंदिर… या प्रकृति का रहस्य?
आज भी, जब कोई नई पीढ़ी इस मंदिर की कहानी सुनती है, तो पहले विश्वास नहीं करती। लेकिन जब पहली बार गर्म दोपहर में छत से टपकती बूंदें देखती है, आँखें आश्चर्य से फैल जाती हैं।
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