पंजाबी फ़िल्मों की दुनिया में एक चमकता हुआ सितारा थे वीरेंद्र, जिनका असली नाम था सुभाष डडवाल। लोग उन्हें प्यार से ‘भाशी’ कहकर बुलाते थे। वे सुपरस्टार धर्मेंद्र के सगे भाई तो नहीं थे, लेकिन कज़िन भाई होने के साथ-साथ फ़िल्मी दुनिया में अपनी अलग, महत्वपूर्ण पहचान बना चुके थे। मात्र बारह वर्षों के छोटे से करियर में उन्होंने लगभग 25 फ़िल्मों में काम किया और ज्यादातर फ़िल्में बड़ी सफल साबित हुईं। अभिनय, गायकी और फ़िल्म-मेकिंग—तीनों ही क्षेत्रों में उनकी पकड़ मजबूत थी, और कम समय में ही वे पंजाबी सिनेमा का बड़ा नाम बन गए थे। लेकिन यही तेज़ सफलता उन्हें भारी पड़ गई, इतनी भारी कि इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।
साल 1988 की बात है। वीरेंद्र अपनी फ़िल्म ‘जट्ट ते ज़मीन’ की शूटिंग के सिलसिले में लुधियाना के पास एक गाँव में मौजूद थे। माहौल बिल्कुल सामान्य था, कलाकार और तकनीशियन अपनी-अपनी तैयारियों में लगे हुए थे। वीरेंद्र भी सेट पर अंतिम तैयारियाँ देख रहे थे। तभी अचानक कुछ अज्ञात हमलावर वहाँ आ पहुँचे। किसी को संभलने का मौका तक नहीं मिला और उन्होंने वीरेंद्र पर गोलियों की बौछार कर दी। देखते ही देखते पूरा सेट दहशत में बदल गया। इस निर्मम हमले में वीरेंद्र की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि हमलावर बिना किसी प्रतिरोध के भाग निकले।
इस सनसनीखेज हत्या ने पूरे पंजाब और फ़िल्म जगत को हिला कर रख दिया। सबसे हैरानी की बात यह रही कि तमाम जाँच-पड़ताल और पुलिसिया कोशिशों के बावजूद आज तक यह पता नहीं चल सका कि वीरेंद्र की हत्या किसने करवाई और क्यों करवाई। मामला समय की धूल में कहीं दब गया, लेकिन रहस्य आज भी जस का तस बना हुआ है।
कई लोग यह मानते हैं कि वीरेंद्र की मौत के पीछे उनकी अचानक मिली अपार सफलता थी। बहुत कम समय में पंजाबी फ़िल्म इंडस्ट्री में उनका नाम तेजी से ऊँचाइयों पर पहुँच गया था। स्वाभाविक है कि ऐसे उभार से कुछ लोग जलन भी रखते होंगे। कुछ का कहना है कि इसी पेशेवर ईर्ष्या ने इस जघन्य अपराध का रूप ले लिया। हालांकि इस दिशा में कभी किसी ठोस सबूत की पुष्टि नहीं हुई। उनके बारे में कई तरह की अफवाहें, कहानियाँ और अटकलें फैलती रहीं, मगर सच आज भी रहस्य की परतों में छिपा है।
वीरेंद्र के जीवन और संघर्ष को अमर करने के लिए उनके पुत्र रणदीप आर्य ने एक फ़िल्म बनाने की घोषणा भी की थी। लेकिन समय बीतने के साथ यह परियोजना भी गुमनामी में खो गई और उसके बारे में कोई स्पष्ट जानकारी सामने नहीं आई। रणदीप आर्य की पत्नी प्रसिद्ध अभिनेत्री दीप्ति भटनागर हैं, जिन्होंने कभी-कभार इस विषय पर बात की, परन्तु फ़िल्म का अंजाम क्या हुआ, यह आज भी अनजान है।
वीरेंद्र की कहानी एक ऐसे कलाकार की दुखद दास्तान है जिसने कम समय में शानदार पहचान तो बनाई, लेकिन उसकी चमक से पैदा हुई ईर्ष्या ने उसकी जिंदगी ही छीन ली। पंजाबी सिनेमा के इतिहास में उनका नाम आज भी सम्मान, प्रतिभा और एक अनसुलझे रहस्य के साथ याद किया जाता है।
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