भारतीय संस्कृति और आयुर्वेद में "ब्राह्ममुहूर्त" को विशेष महत्व दिया गया है। यह मुहूर्त सूर्योदय से लगभग डेढ़ घंटा पूर्व होता है, सामान्यतः प्रातः 4 बजे से 5:30 बजे के बीच का समय। इसे “ईश्वर का समय” या “सतोगुणी काल” कहा जाता है, क्योंकि इस समय प्रकृति, शरीर और मन पूरी तरह से शांत और शुद्ध अवस्था में होते हैं। ब्राह्ममुहूर्त में जागरण न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है, बल्कि यह व्यक्ति के मानसिक, आध्यात्मिक और आत्मिक विकास में भी सहायक होता है।
सबसे पहला लाभ शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ा है। ब्राह्ममुहूर्त में वायुमंडल की हवा सबसे शुद्ध होती है, जिसमें प्रचुर मात्रा में प्राणवायु (ऑक्सीजन) होती है। इस समय योग, प्राणायाम और ध्यान करने से फेफड़े अधिक ऑक्सीजन ग्रहण कर पाते हैं, जिससे शरीर की कोशिकाओं को ऊर्जा मिलती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। इससे थकान, आलस्य और अवसाद जैसी समस्याएं भी दूर होती हैं।
दूसरा महत्वपूर्ण लाभ मानसिक स्पष्टता और एकाग्रता में वृद्धि है। ब्राह्ममुहूर्त में वातावरण में शांति होती है और मन में विचारों की हलचल कम होती है। यह समय ध्यान और आत्मचिंतन के लिए सर्वोत्तम माना गया है। ब्राह्ममुहूर्त में उठकर यदि व्यक्ति थोड़ी देर ध्यान करता है या आत्मनिरीक्षण करता है, तो दिनभर की मनोस्थिति सकारात्मक और स्थिर बनी रहती है। विद्यार्थी इस समय पढ़ाई करें तो स्मरण शक्ति और एकाग्रता में उल्लेखनीय सुधार आता है।
आयुर्वेद के अनुसार, यह समय वात दोष के प्रभाव का होता है, जो शरीर में गति, संचार और मस्तिष्कीय क्रियाओं को नियंत्रित करता है। इसलिए ब्राह्ममुहूर्त में जागना शरीर के त्रिदोषों (वात, पित्त, कफ) को संतुलित करने में भी सहायक होता है। यह समय शरीर की प्राकृतिक जैविक घड़ी के अनुकूल होता है, जिससे पाचन तंत्र बेहतर कार्य करता है, नींद की गुणवत्ता सुधरती है और संपूर्ण दिन ऊर्जावान बना रहता है।
आध्यात्मिक दृष्टि से भी ब्राह्ममुहूर्त का समय आत्म-संवाद, साधना और ईश्वर से जुड़ने के लिए सबसे पवित्र माना गया है। इस समय की गई प्रार्थना, जप, मंत्रोच्चार या स्वाध्याय अत्यंत प्रभावशाली होता है। ऋषि-मुनियों और योगियों का मानना है कि इस समय किए गए सत्कर्म व्यक्ति के भीतर शांति, संयम और दिव्यता को जाग्रत करते हैं।
ब्राह्ममुहूर्त में उठने की आदत से जीवन में अनुशासन आता है। व्यक्ति समय के महत्व को समझने लगता है और दिन की शुरुआत सकारात्मक ऊर्जा के साथ करता है। यह आदत न केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाती है, बल्कि मानसिक रूप से संतुलित, और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाती है।
संक्षेप में कहा जाए तो ब्राह्ममुहूर्त में उठना एक आदर्श जीवनशैली का अंग है, जो व्यक्ति को दीर्घायु, रोगमुक्त, बुद्धिमान और शांत बनाता है। आधुनिक विज्ञान भी अब इस प्राचीन ज्ञान की पुष्टि कर रहा है। अतः हमें चाहिए कि हम इस जीवनदायिनी परंपरा को अपनाएं और स्वयं को शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाएं।

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