अरब के पुराने समय में व्यापारियों की एक बेहद अनोखी और रोचक परंपरा थी, जो आज भी कई जगहों पर सुनाई जाती है। यह परंपरा उनके व्यवसाय करने के तरीके और आपसी सहयोग की भावना को दर्शाती थी। बाजारों में दुकानों के बाहर रखी जाने वाली एक साधारण सी कुर्सी उस समय व्यापारियों के बीच एक तरह का संकेत मानी जाती थी। यह कुर्सी केवल बैठने के लिए नहीं, बल्कि एक खास संदेश देने के लिए रखी जाती थी।
हर सुबह जब व्यापारी अपनी दुकान खोलते, तो वे दुकान के बाहर एक छोटी सी लकड़ी की कुर्सी रख देते थे। इसका मतलब यह होता था कि अभी तक उनकी "बोहनी" यानी दिन की पहली बिक्री नहीं हुई है। उस दौर में यह माना जाता था कि पहली बिक्री व्यापार के लिए बहुत शुभ होती है। व्यापारी मानते थे कि दिन की शुरुआत अच्छी बिक्री से हो तो दिनभर कारोबार में तरक्की होती है और दुकान में ग्राहकों की आवाजाही बढ़ती है।
जब पहला ग्राहक आता, तो दुकानदार बड़े आदर और खुशी से उसकी सेवा करता और बिक्री पूरी होने के बाद वह दुकान के बाहर रखी कुर्सी को अंदर ले जाता। यह संकेत होता था कि अब उसकी पहली बिक्री हो चुकी है। लेकिन दिलचस्प बात यह थी कि यह संकेत न केवल ग्राहकों के लिए बल्कि बाकी दुकानदारों के लिए भी मायने रखता था।
अगर दूसरा ग्राहक आता और वह किसी चीज़ के लिए पूछता, तो दुकानदार पहले आस-पास नजर दौड़ाता। वह देखता कि किन दुकानों के बाहर अभी भी कुर्सी रखी हुई है। यदि उसे कोई दुकान दिखती जिसके बाहर कुर्सी मौजूद हो, तो वह ग्राहक को वहीं जाने की सलाह देता। वह कहता, "आपको अपनी जरूरत की चीज़ उस दुकान से मिल जाएगी। मैं तो अपनी बोहनी कर चुका हूं।" इस तरह व्यापारी ग्राहक को उस दुकान की ओर भेज देते, जहां पहली बिक्री अभी नहीं हुई थी।
इस परंपरा में निहित भावना बेहद प्रेरणादायक थी। व्यापारी सिर्फ अपने फायदे के बारे में नहीं सोचते थे, बल्कि पड़ोसी दुकानदार की खुशहाली का भी ख्याल रखते थे। उनके लिए यह महत्वपूर्ण था कि हर दुकान का दिन शुभता के साथ शुरू हो। यह व्यापारिक प्रतिस्पर्धा नहीं, बल्कि भाईचारे और सहयोग का प्रतीक था।
इस प्रथा से यह भी पता चलता है कि अरब के व्यापारी मानते थे कि किसी का दिन शुभ बनाने से उनका दिन भी बेहतर होगा। बाजार में सभी का व्यवसाय चलना जरूरी है, तभी पूरे इलाके में समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है। कुर्सी बाहर रखना और पहली बिक्री होने के बाद उसे अंदर कर लेना केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि आपसी सहयोग और सद्भाव का जीता-जागता उदाहरण था।
आज भले ही यह प्रथा बहुत कम जगहों पर दिखाई देती हो, लेकिन यह कहानी हमें सिखाती है कि व्यापार केवल मुनाफा कमाने का साधन नहीं, बल्कि आपसी मदद, विश्वास और अच्छे संबंध बनाने का माध्यम भी हो सकता है। अरब के उन व्यापारियों की तरह अगर आज भी व्यवसाय में सहयोग और भाईचारा कायम रहे, तो व्यापार और समाज दोनों में सकारात्मकता और सफलता स्वाभाविक रूप से बढ़ेगी।
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