किसी गाँव में एक मेहनती किसान रहता था। उसकी छोटी-सी खेती थी और उसी पर उसका गुजर-बसर होता था। उसके पास एक बूढ़ा बैल भी था, जो सालों से उसके साथ खेतों में काम करता आया था। किसान का दिल उस बैल से जुड़ा हुआ था, क्योंकि बैल ने उसकी हर कठिन घड़ी में साथ दिया था। हालांकि अब वह बूढ़ा हो चला था, फिर भी किसान उसे अपने परिवार का हिस्सा मानता था।
एक दिन सुबह-सुबह हमेशा की तरह किसान खेत पर जाने की तैयारी कर रहा था। तभी अचानक उसे जोर-जोर से किसी पशु के रोने की आवाज़ सुनाई दी। वह दौड़ते हुए आवाज़ की दिशा में पहुँचा और देखा कि उसका प्रिय बैल पड़ोसी के आँगन के पास बने एक पुराने कुएँ में गिर गया है। कुआँ बहुत गहरा था और बैल बेबस होकर बार-बार जोर-जोर से रंभा रहा था। वह डर और दर्द से काँप रहा था। किसान का दिल दहल गया।
किसान कुएँ के पास बैठ कर घंटों सोचता रहा — “इसे कैसे निकाला जाए? रस्सी से? लोग बुलाकर? लेकिन अगर निकाला भी जाए तो यह बुढ़ापे में कैसे जियेगा? इसकी सेवा करना मेरे लिए अब कितना कठिन हो गया है…”
वह परेशान और दुविधा में था। आखिरकार, लंबी सोच-विचार के बाद उसने मन कड़ा कर लिया। उसने सोचा, “बैल बहुत बूढ़ा हो चुका है… अब शायद इसे बचाने से कोई खास लाभ भी नहीं। दुख तो होगा, पर शायद यहीं दफना देना बेहतर है…”
उसने पूरे गाँव में जाकर पड़ोसियों से मदद मांगी। जल्द ही कुछ लोग फावड़े लेकर आ गए। सभी ने कुएँ में मिट्टी फेंककर उसे भरने का काम शुरू कर दिया, ताकि बैल वहीं दब जाए और उसकी पीड़ा समाप्त हो जाए।
जब बैल ने महसूस किया कि ऊपर से मिट्टी गिर रही है, तो वह और बुरी तरह से रोने लगा। उसकी चीखें और भी दर्दनाक हो गईं। लेकिन थोड़ी देर बाद अचानक उसकी आवाज़ एकदम शांत हो गई। किसान और उसकी टोली को यह अजीब लगा, पर उन्होंने सोचा कि अब वह हार मान गया होगा, इसलिए उन्होंने मिट्टी डालना जारी रखा।
किसान को लगा कि शायद उसका बैल अब कमजोर हो चुका है और अंत स्वीकार कर चुका है। पर जैसे ही उसने एक बार कुएँ में झाँका — उसकी आँखें हैरानी से फैल गईं। वह नज़ारा अविश्वसनीय था।
हर बार जब बैल की पीठ पर मिट्टी गिरती — वह उसे झटक देता, मिट्टी नीचे गिर जाती… और फिर वह उस गिरी हुई मिट्टी पर एक कदम ऊपर चढ़ जाता।
किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक बूढ़ा बैल ऐसी चतुराई और हिम्मत दिखा सकता है। ऊपर से लगातार मिट्टी गिरती रही और बैल बिना रुके वही क्रिया करता रहा — झटकना, गिराना, और कदम आगे बढ़ाते जाना।
धीरे-धीरे मिट्टी कुएँ में भरती गई और बैल ऊपर आता गया। हर कदम के साथ उसकी आंखों में नया विश्वास चमकने लगा। किसान और उसके पड़ोसी अवाक होकर यह अद्भुत दृश्य देखते रहे।
कुछ ही देर में — वह बैल कुएँ के मुहाने तक पहुँच गया। उसने एक जोरदार छलांग लगाई, जमीन पर उतरा और तेज़ी से खुले खेतों की ओर भाग गया। वह आज़ाद था… फिर से ज़िंदा था… जीत चुका था।
किसान की आँखों में आँसू थे — लेकिन इस बार यह दुख के नहीं, गर्व के आँसू थे। उसने समझ लिया कि जिंदगी का असली सबक उसे उसके अपने बैल ने सिखाया है।
जीवन का संदेश
कभी-कभी परिस्थितियाँ इतनी बुरी होती हैं कि लगता है अब कुछ नहीं बचा… सब खत्म…
लेकिन यही तो जीवन की असली परीक्षा है।
और बस — जीत उसी की होती है, जो हार मानने से इनकार करता है।
जीवन के लिए एक छोटी सी सीख
0 Comments