कहते हैं कि हर पवित्र धाम की अपनी एक कथा होती है, लेकिन जगन्नाथ पुरी मंदिर की कहानी सिर्फ एक कथा नहीं, आस्था और चमत्कार का जीवंत अनुभव है। यह मंदिर सिर्फ पत्थरों से बना एक ढांचा नहीं, बल्कि हज़ारों वर्षों की भक्ति, संस्कृति और दिव्यता का केंद्र है। समुद्र की लहरों से घिरा ओड़िशा का यह शहर, पुरी, आज भी भगवान जगन्नाथ के आश्रय में सांस लेता है।
एक राजा का स्वप्न
बहुत समय पहले, राजा इंद्रद्युम्न नाम का एक धर्मप्रिय राजा था। उसके पास सबकुछ था — धन, वैभव और सत्ता। लेकिन उसके हृदय में एक खालीपन था। वह किसी ऐसी दिव्य शक्ति की खोज में था जो उसके मन को शांति प्रदान कर सके।
एक रात उसने स्वप्न में एक अद्भुत दृश्य देखा — एक ऐसे देव का, जो जगत के नाथ हैं, जगन्नाथ। स्वप्न में मिले संदेश ने उसे अपनी आत्मिक यात्रा पर निकलने के लिए प्रेरित किया। वह जंगलों, नदियों और पर्वतों के बीच उस दिव्य स्वरूप की तलाश करता रहा। महीनों की खोज के बाद वह एक पवित्र स्थल तक पहुँचा, जहाँ समुद्री हवा के साथ कोई आध्यात्मिक कंपन बहता प्रतीत होता था।
राजा ने यहीं मंदिर बनाने का निर्णय लिया — एक ऐसा धाम, जहाँ जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा साक्षात स्वरूप में विराजें। और इस प्रकार उस विशाल मंदिर के निर्माण की शुरुआत हुई — जिसे आज दुनिया जगन्नाथ मंदिर के नाम से जानती है।
भव्य वास्तुकला का चमत्कार
जैसे ही कोई मंदिर के शहर पुरी में प्रवेश करता है, दूर से ही उसे एक विशाल शिखर दिखाई देने लगता है। यह शिखर मानो आकाश को छूने की कोशिश करता है, जैसे जगन्नाथ का आशीर्वाद हर दिशाओं में फैल रहा हो। मंदिर के चारों ओर मजबूत दीवारें और चार भव्य द्वार — जिनमें सबसे प्रमुख है सिंहद्वार — भक्तों का स्वागत करते हैं।
मंदिर के प्रांगण में कदम रखते ही ऐसा लगता है जैसे समय रुक गया हो। घंटों की ध्वनि, पुजारी की मंत्रोच्चारण और भक्तों की हर-हर ध्वनि एक अद्भुत माहौल रच देती है। ऐसा वातावरण जो मन को बाहर की दुनिया से काटकर भीतर झाँकने को मजबूर कर देता है।
रहस्य और दिव्यता साथ-साथ
जगन्नाथ मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इसकी हर दीवार, हर परंपरा अपने भीतर कोई रहस्य समेटे हुए है।
इसी तरह, मंदिर के शीर्ष पर लगे चक्र — नीलचक्र — का आकार ऐसा है कि किसी भी दिशा से देखने पर वह आपको ठीक सामने से दिखाई देता है। जैसे भगवान स्वयं हर ओर ध्यान दे रहे हों।
मंदिर का रसोईघर भी अपने आप में चमत्कार है। यहाँ प्रसाद बड़े-बड़े मिट्टी के बर्तनों में पकता है — और कहा जाता है कि किसी दिन प्रसाद कम नहीं पड़ता, चाहे लाखों भक्त क्यों न आए हों। हर थाली में समान स्वाद, समान प्रेम — जैसे भगवान स्वयं उसे परोस रहे हों।
रथयात्रा — जब भगवान निकलते हैं नगर भ्रमण पर
जब देवताओं को रथों पर बैठाकर मंदिर से बाहर लाया जाता है, पूरा पुरी शहर “जय जगन्नाथ!” की गर्जना से गूँज उठता है।
इस दिन किसी राजा-रंक में भेद नहीं। सभी एक समान होकर रथ के रस्से को खींचते हैं — ऐसा माना जाता है कि स्वयं भगवान जगन्नाथ रथ खींचने वाले हर हाथ को आशीर्वाद देते हैं। यह दिन सिर्फ एक यात्रा नहीं, भक्ति का महासागर होता है।
भगवान का अद्भुत स्वरूप
भक्ति का सागर
मंदिर के वातावरण में एक गहरी शांति बसती है — जो मन को भीतर तक छू जाती है। जैसे भगवान जगन्नाथ कह रहे हों—
“आओ… तुम जैसे भी हो, मेरे हो।”
आध्यात्मिक सीख
जगन्नाथ पुरी मंदिर हमें यह सिखाता है कि—
अंत में… पुकार अब भी जारी है
जब समुद्री हवा मंदिर की दीवारों से टकराती है, जैसे वह हर यात्री को पुकारती है —
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