साल 1919 की बात है। उस समय भारत अंग्रेज़ी शासन के अधीन था। दिल्ली में ब्रिटिश हुकूमत एक बड़ी समस्या से जूझ रही थी। शहर में ज़हरीले कोबरा साँपों की भरमार थी। ये साँप न केवल स्थानीय लोगों के लिए बल्कि अंग्रेज़ बसने वालों के लिए भी डर का कारण बन चुके थे। रात-दिन इस खतरे के बीच रहना मुश्किल हो गया था। ब्रिटिश अधिकारियों ने सोचा कि अगर इन कोबरा साँपों की संख्या कम कर दी जाए तो लोगों में फैला डर भी घट जाएगा और उनका शासन और सुरक्षित लगेगा।
इसी सोच के साथ सरकार ने एक योजना बनाई। योजना यह थी कि जो भी व्यक्ति मरा हुआ कोबरा लेकर आएगा, उसे इनाम दिया जाएगा। इस घोषणा ने दिल्ली के गरीब लोगों में उत्साह पैदा कर दिया। जिन लोगों के पास काम-धंधा नहीं था, उन्होंने इसे पैसे कमाने का आसान तरीका समझा। शुरुआत में यह योजना बेहद सफल दिखाई दी। लोग अपने आसपास के इलाकों से कोबरा पकड़कर मारने लगे और उन्हें सरकारी दफ्तरों में जमा करके इनाम लेने लगे। इससे न केवल आम लोगों को कुछ राहत मिली, बल्कि सरकार को भी लगा कि उनका कदम सही दिशा में जा रहा है।
लेकिन धीरे-धीरे स्थिति बदलने लगी। दिल्ली के चतुर और गरीब लोगों ने इस योजना का दूसरा पहलू खोज लिया। उन्होंने सोचा कि अगर कोबरा साँपों की संख्या खत्म हो जाएगी, तो इनाम भी बंद हो जाएगा। इसलिए उन्होंने अपने घरों और खेतों में कोबरा पालना शुरू कर दिया। वे उन्हें भोजन देते, उनकी संख्या बढ़ाते और फिर धीरे-धीरे मारकर सरकार को दिखाते। इस तरह उन्हें लगातार इनाम मिलता रहा और यह उनके लिए स्थायी आय का साधन बन गया।
शुरुआत में अंग्रेज़ अधिकारी इस चालाकी को समझ नहीं पाए। उन्हें लगा कि लोग बड़ी मेहनत से कोबरा ढूँढकर मार रहे हैं। लेकिन कुछ समय बाद हक़ीक़त सामने आई। पता चला कि जिन साँपों को लोग मारकर ला रहे हैं, वे वास्तव में पाले हुए कोबरा थे। यह सरकार के लिए बड़ा झटका था। उन्हें अहसास हुआ कि उनकी बनाई योजना ने असल में समस्या को हल करने की बजाय और बढ़ा दिया है।
जैसे ही यह धोखा उजागर हुआ, अंग्रेज़ हुकूमत ने तुरंत यह इनाम योजना बंद कर दी। लेकिन इससे हालात और बिगड़ गए। जिन लोगों ने अपने घरों और खेतों में कोबरा पाले हुए थे, उन्हें अब कोई फायदा नहीं दिखा। इनाम मिलना बंद हो गया तो उन साँपों को पालकर रखना बेकार लगने लगा। ऐसे में लोगों ने उन कोबरा साँपों को खुले में छोड़ दिया।
नतीजा यह हुआ कि दिल्ली में कोबरा की संख्या पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई। जिस समस्या को हल करने के लिए योजना बनाई गई थी, वही समस्या और गंभीर रूप ले चुकी थी।
यह कहानी “कोबरा प्रभाव” के नाम से जानी जाती है। यह हमें सिखाती है कि कभी-कभी किसी समस्या को हल करने के लिए बनाई गई योजना अनजाने में उस समस्या को और बढ़ा सकती है। सही समाधान तभी निकलता है जब हम लंबे समय तक उसके परिणामों पर गहराई से विचार करें।
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