रेलवे स्टेशन के पास रोज़ एक भिखारी बैठा करता था। शरीर से वह बिल्कुल स्वस्थ था, फिर भी उसकी आदत बन चुकी थी कि हर सुबह वह स्टेशन पहुँचकर ट्रेन में चढ़ जाता और यात्रियों से भीख माँगता। कुछ लोग उसे देखकर उसकी हालत पर दया कर पैसे दे देते, तो कुछ यह सोचकर मना कर देते कि जब शरीर से ठीक-ठाक है तो भीख क्यों माँग रहा है।
एक दिन हमेशा की तरह वह ट्रेन में चढ़ा और कोच-कोच घूमकर पैसे माँगने लगा। अचानक उसकी नज़र एक कोने में बैठे एक अमीर सेठ पर पड़ी। सेठ साफ-सुथरे कपड़ों में, गरिमा के साथ बैठा था। भिखारी ने मन ही मन सोचा – “आज तो इससे अच्छी खासी रकम मिलेगी।”
वह बड़े आत्मविश्वास से सेठ के पास पहुँचा और बोला –
“सेठ जी, कुछ पैसे दे दो।”
सेठ ने उसकी ओर देखा और मुस्कराकर कहा –
“क्यों भाई, मैंने कभी तुमसे पैसे लिए हैं या तुम्हें पैसे दिए हैं?”
भिखारी चौंक गया। कुछ पल सोचने के बाद बोला –
“मैं तो खुद भिखारी हूँ, भला किसी को पैसे कैसे दूँगा?”
इस पर सेठ ने गंभीर स्वर में कहा –
“मैं व्यापारी हूँ। मैं किसी को यूँ ही पैसे नहीं देता। अगर तुम्हें मुझसे पैसे चाहिए तो पहले मुझे कुछ देना सीखो।”
इतना कहकर सेठ अगले स्टेशन पर उतर गया।
भिखारी पूरे दिन यही सोचता रहा – “देने के बाद ही पाने की बात… आखिर इसका मतलब क्या है?”
वह स्टेशन पर बैठा था कि उसकी नज़र पास लगे फूलों के पेड़ों पर पड़ी। अचानक उसके मन में एक विचार आया – “क्यों न लोगों को फूल देकर उनसे पैसे लिए जाएं?”
अगली सुबह वह फूल तोड़कर ट्रेन में चढ़ा। इस बार उसने यात्रियों को फूल दिए और बदले में पैसे माँगे। लोगों ने खुशी-खुशी उसे पैसे दिए। उस दिन उसे जितनी कमाई हुई, उतनी कभी नहीं हुई थी। उसी क्षण उसे समझ आ गया – “जब तक तुम किसी को कुछ दोगे नहीं, तब तक लोग तुम्हें भी कुछ नहीं देंगे।”
धीरे-धीरे उसने यही आदत बना ली। फूल बाँटता और बदले में पैसे लेता। अब वह भिखारी नहीं रहा, एक छोटा व्यापारी बन चुका था।
कई दिनों बाद, एक बार फिर उसे वही सेठ ट्रेन में दिखाई दिया। भिखारी मुस्कुराया और बोला –
“सेठ जी, पहचानें मुझे? मैं वही भिखारी हूँ। आपने कहा था, लेने से पहले कुछ देना पड़ता है। उसी दिन से मैंने फूल बाँटने शुरू कर दिए। आज लोग मुझे पैसे देते हैं। सच कहूँ तो आपकी बात ने मेरी ज़िंदगी बदल दी।”
सेठ ने मुस्कुराकर जवाब दिया –
“अब तुम भिखारी नहीं, व्यापारी हो गए हो।”
भिखारी उस दिन भी सेठ की बातें मन ही मन दोहराता रहा। और समय बीतते-बीतते उसका फूलों का कारोबार इतना बढ़ा कि वह अब हवाई जहाज से सफर करने लगा। एक दिन संयोग से उसकी मुलाकात फिर से उसी सेठ से हो गई।
वह बड़े गर्व से बोला –
“सेठ जी, याद है? मैं वही भिखारी हूँ जिसे आपने व्यापारी कहा था। आज मैं आपके कहे एक वाक्य की वजह से फूलों का बड़ा व्यापारी बन चुका हूँ।”
सेठ ने प्रसन्न होकर कहा –
“तुमने मेरी बातों को सकारात्मक रूप से लिया, तभी तुम इस मुकाम तक पहुँचे। याद रखना, इंसान वही बनता है जैसा वह सोचता है।”
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