संकट के समय घबराने के बजाय धैर्य और बुद्धिमानी से काम लेना चाहिए।

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एक बार की बात है। स्वामी विवेकानंद जी ट्रेन में यात्रा कर रहे थे। साधारण वस्त्र, तेजस्वी चेहरा और शांत स्वभाव उनके व्यक्तित्व की पहचान थी। वे खिड़की के पास बैठे हुए गहरी सोच में डूबे थे। उनके सामने वाली सीट पर दो विदेशी महिलाएँ बैठी थीं।

कुछ देर तक वे महिलाएँ आपस में बातें करती रहीं और फिर उनकी नज़र स्वामी जी पर पड़ी। स्वामी जी का साधारण पहनावा उन्हें अजीब लगा। वे आपस में फुसफुसाकर हँसने लगीं और धीरे-धीरे स्वामी जी के कपड़ों का मज़ाक उड़ाने लगीं। उनके लिए शायद यह एक खेल था, लेकिन स्वामी जी शांत भाव से बैठे रहे, मानो उन्हें कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा हो।

थोड़ी देर बाद उन महिलाओं की नज़र स्वामी जी की कलाई पर बंधी एक सुंदर घड़ी पर गई। यह घड़ी न केवल आकर्षक थी बल्कि कीमती भी लग रही थी। लालच के कारण उन्होंने एक दुष्ट योजना बनाई। दोनों एक-दूसरे को देख मुस्कुराईं और फिर स्वामी जी के पास आकर बोलीं –
“यह घड़ी हमें चुपचाप दे दो, वरना हम पुलिस को बुलाकर कहेंगे कि तुमने हमारे साथ बद्तमीजी की है।”

यह धमकी सुनने वाला कोई भी साधारण व्यक्ति घबरा जाता। लेकिन स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष ने बड़ी ही बुद्धिमानी दिखाई। उन्होंने तुरंत स्थिति को समझ लिया और बहरे होने का नाटक किया। वे ऐसे व्यवहार करने लगे मानो उन्हें कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा हो।

दोनों औरतें बार-बार इशारे से अपनी बात समझाने लगीं, लेकिन स्वामी जी उनकी ओर देखते और फिर सिर हिलाकर यह जताते कि उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा है। अंत में उन्होंने बड़ी विनम्रता से इशारे में कहा कि अगर उन्हें कुछ कहना है तो कागज पर लिख दें।

उनमें से एक महिला ने तुरंत कागज और पेन निकाला और पूरा धमकी भरा वाक्य लिख डाला –
“चुपचाप यह घड़ी हमें दे दो, वरना हम पुलिस को बुलाएँगी और कहेंगी कि तुम हमारे साथ बद्तमीजी कर रहे हो।”

जैसे ही वह पर्ची स्वामी जी को थमाई गई, स्वामी जी ने मुस्कुराते हुए उसे ध्यान से पढ़ा। फिर बहुत शांति और दृढ़ता से बोले –
“अब आप पुलिस को बुलाइए।”

उनके शब्द सुनते ही दोनों महिलाएँ सन्न रह गईं। अब उनके पास कोई रास्ता नहीं था। जिस धमकी के सहारे वे स्वामी जी को डराना चाहती थीं, वही अब उनके लिए फंदा बन गई थी। क्योंकि लिखित रूप में उन्होंने स्वयं अपना अपराध स्वीकार कर लिया था। यदि पुलिस आती तो वही पर्ची उनके अपराध का सबसे बड़ा सबूत बन जाती।

शर्मिंदगी और डर से दोनों महिलाएँ चुपचाप वहाँ से उठकर चली गईं।

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